पिछले कुछ वर्षो में संयुक्त परिवार का प्रचलन घटता जा रहा है। इसका एक बड़ा कारण है संवादहीनता। पहले एक ही छत के नीचे एक ही परिवार की चार-चार पीढ़ियां एक साथ खुशी से रहती थीं। लेकिन आजकल सवांदहीनता के कारण संयुक्त परिवार का प्रचलन लगभग खत्म सा हो गया है। कल्पना कीजिए कि पहले संयुक्त परिवार में चाय भी बनती तो बीस कप एक साथ, बीस व्यक्तियों का खाना एक साथ। दोनों समय जब खाना बनता तो लगता जैसे किसी छोटे-मोटे समारोह की तैयारियां हो रही है। जिस बहू के साथ जो काम लगा निपटा दिया। किसी को किसी से कोई शिकवा नहीं। पूरे परिवार में आपसी समन्वय और त्याग की भावना होती थी। लेकिन संवादहीनता के चलते इन दिनो परिवार तीन-तरह के होते जा रहे हैं।
पहले पड़ौस में किसी लड़की की शादी होती तो पूरे मोहल्ले में जश्न का सा माहौल बन जाता था। पूरा मोहल्ला शादी की तैयारियों में जुट जाता था, जैसे उनकी स्वयं कि लड़की की शादी हो रही हैं। मोहल्ले के सभी व्यक्ति यथाशक्ति सहयोग करते थें। लेकिन अब कब बारात आती है और कब लड़की विदा हो जाती है, पड़ौसियों को पता तक नहीं चलता। आज पड़ौस में कौन रह रहा है, यही पता नही, उसके सुख-दुख में भागीदार बनना तो बहुत बड़ी बात हैं।
रामेश्रवर दो बरस पहले राज्य सेवा से निवृत हुए। उनका पुत्र रमेश भी उसी कार्यालय में काम करता है, किंतु वह अपने व्यवहार से प्रतिपल यह जाता रहता है जैसे पिता ने तो कभी नौकरी की ही नहीं। रामेश्वर पैंसठ बरस की उम्र में भी घर से बाहर किलता है तो कहकर जाता है कि वह कहां जा रहा है और कब तक लौट आएगा, किंतु रमेश कभी भी रामेश्वर को यह कहकर नहीं जाता कि वह कहां जा रहा हैं और कब तक लौट आएगा। चिंताग्रस्त पिता देर रात तक उसका इंजार करता रहता हैं।