ना उम्र की सीमा हो, ना जन्मों का हो बंधन जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन, कुछ रिश्तें हमें जन्म के साथ ही प्राप्त है जिनमें हम चाहकर भी परिवर्तन नहीं कर सकते है। जैसे माता-पिता, भाई बहन इत्यादि। किंतु जो रिश्ते जीवन के दौरान बनते है उनमें हमें चुनाव की स्वतंत्रता होती हैं जैसे पति पत्नी, बहु, दामाद, मित्र, सखा, संबंधी इसी तरह शादी ब्याह ऐसा ही एक संबंध है जिसमें हम चुनाव कर सकते है। आयु, परिवार, जाति, राज्य सभी मामलों में नियम न होने के बाद भी हम समाज द्वारा बनाये गए नियमों पर ही चलते आ रहे है। जिसमें तय है विवाह अपनी जाति में हो, बराबर के परिवार में हो, पति उम्र में बड़ा हो और दोनों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में ज्यादा अंतर न हो। बदलते परिवेश में समय के साथ साथ इन मान्यताओं पर ध्यान तो दिया जाता है परंतु पालन नहीं। अब लड़के लड़कियां अपनी पसंद और इच्छानुसार शादी विवाह करने लगे तो जाति, धर्म, आयु, गोत्र, परिवार के बंधन भी ढीले पड़ने लगे है। दरअसल जब दिल का मामला हो ताो फिर अन्य सारी बातें गौण हो जाती है। ऐसे कई मामलों में लड़कियों उम्र में अपने से छोटे लड़के से शादी कर लेती है। कुछ जोड़े तो उम्र भर सफलता पूर्वक साथ निभाते है। परंतु कुछ मामलों में ये सफर दो चार कदम चल कर अलग राह पकड़ लेता है।
हमारे समाज में विवाह मात्र दो प्रणियों का मिलन न होकर दो परिवारों का समन्वत होता है। जहां परिवार की मर्यादा बचाए रखने के लिए कई बार लोग न चाहते हुए भी मजबूरन एक दूसरे से निभा लेते है। ऐसी स्थिति में पति पत्नी के अलावा परिवार के अन्य सदस्यों से भी परिपक्वता की उम्मीद की जाती है। आमतौर पर स्त्री, पुरूष की अपेक्षा अधिक सहनशील और परिपक्व मानी जाती है। इसी कारण आमतौर पर वर वधु से अधिक उम्र का ही ढूंढा जाता हैं यही परंपरा बन गयी हैं कि विवाहित जीवन के सुख पूर्ण होने के लिए पति को पत्नी से उम्र में बड़ा होना चाहिए। एक समय था जब बालविवाह कर दिए जाते थे, कुलीन परिवार में कन्या का विवाह करने की चाह में बेमेल विवाह भी कर दिए जाते थे। कई बार तो मात्र तेरह व चैदह वर्ष की कन्या का विवाह उसके पिता की आयु के बराबर व्यक्ति से कर दिया जाता था। पत्नी जब यौवन की दहलिज पर पहुंचती पति के पैर कब्र में पहुंचने लगते। समय के साथ परिवर्तन आए और स्त्रियों को स्वतंत्रता जागी। वैचारिक स्वतंत्रता प्रमुख थी। उसमें। अब वे शादी विवाह के मामले में मुखर हो गई थी। यदि कोई युवती अपने से छोटे उम्र के युवक को पति बनाना चाहे तो कोई समाज का बंधन या कानून का बंधन उसे नहीं रोक सकता। वैवाहिक मतभेद तो समान आयु वाले जोड़ों में या पत्नी के छोटी उम्र्र के होने पर भी होते हैं, फिर उम्र का फासला इतना महत्वपूर्ण क्यों हो? समय के साथ-साथ शिक्षा का प्रचार होन से स्त्रियां जागरूक हुई है। अधिकांश छोटी उम्र में घर बसा कर पति और बच्चों में व्यस्त होने के बजाय कैरियर बनाने को प्राथमिकता देने लगी है। घर परिवार में उनका निर्णय भी महत्व रखने लगा है। जिसके चलते वैवाहिक संबंधो में उम्र की दूरियां भी घटने लगी है। कुछ साल का ही अंतर रह गया है पति पत्नी के बीच कभी-कभी एकाध साल या कभी तो लगभग समान आयु वालों में भी संबंध होने लगे है। अब विवाह संबंध के लिए पति का उम्र में बड़ा होना अति आवश्यक नहीं माना जाता बल्कि बहुत सी जोड़ियों में पति कम उम्र के भी होते है और पत्नी उम्र में उनसे बड़ी।
समाज शास्त्रियों के अनुसार लड़कियां जल्दी परिवक्व और समझदार हो जाती है। जबकि लड़को को विकसित होने में कुछ देर लगता है। यह भी एक कारण है कि विवाहित युगल में लडके की उम्र अधिक होना समाज की दृष्टि में ठीक माना जाता है। यही कारण है कि कानूनन भी लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु अठारह वर्ष है और लड़कों के लिए इक्कीस वर्ष। मगर आज की सोच के अनुसार उम्र बड़ी या छोटी होना समझदारी का पैमाना नहीं है। कहा भी गया है कि अक्ल का होता नहीं है वास्ता कुछ उम्र से, अगर नहीं आती तो सौ बरस तक भी नहीं आती। अब तो शादी ब्याह दिल का मामला हो गया है। जिस पर दिल आ जाए उसी से शादी की जाएं।
लड़कियों का अपने से कम उम्र के लड़के से शादी का प्रचलन नया नहीं है, इससे पहले भी यह होता आया है और ऐसी शादियां सफल भी इुई है। कुछ प्रसिद्ध हस्तियां जैसे सुनील दत्त, सचिन तेंदुलकर। व्यवाहिक जीवन के लिए जो बात मायने रखती हैं वह है अंडरस्टैडिंग जो इन जोड़ों में और जैसे और बाकि सफल जोड़ो में रही। विरोधाभास कहां नहीं हैं? हर सिक्के के दो पहलु होते है। कई बार पति के उम्र में छोटे होने पर समस्याएं खड़ी हो जाती है जैसे- जिम्मेदारियों के बोझ से पत्नी की उम्र कुछ वक्त बाद परिपक्कता के चलते बड़ी दिखने लगती है और दूसरी तरफ पति देव की उम्र बढ़ने के साथ उसमें रंगीन मिजाजी चरम सीमा पे पहुंच जाती है। अपनी पत्नी प्रौढ़ा लगने लगती है। ऐसे में प्यार सामिप्य कम होने लगता है और रिश्तों में विरोधाभास बढ़ता चला जाता है।
कोई भी परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चले तो वह वैचारिक सत्वता बन जाती है। जिसे तोड़ना समाज में उथल पुथल को जन्म देता है। विवाह में भी इसी लिए पुरूष को बड़ा होना माननीय है क्योंकि लीक से हटकर किए गए फैसले दंपति में फासले ही लाएंगे।
हमारे पूर्वजों ने जो नियम बनाएं उन में वैज्ञानिक सोच भी शामिल थी। नियम तो सही है कि लड़के और लड़की की उम्र में दो पांच साल का फासला होना ही आदर्श अंतर है। क्यूंकि लड़कियां अपने अचेतन पति में पिता का सामथ्र्य खोजती है जो उन्हें छोटी उम्र की पति में नहीं मिलता और लड़के पत्नी में मां की छवि अपेक्षा करते है। यानि सहचर्या के साथ ममता भी चाहते है।
आज पति का उम्र में पत्नी से छोटी होना कोई समस्या नही लगता कुछ समय से यह चलन बढ़ा है, दोना तरफ से वफादारी और प्रेम स इस रिश्ते को सिंचा जाएं तो छोटे उम्र का पति भी सफल पति साबित होगा, बड़ी उम्र की पत्नी भी पति की प्रिय बनी रहेगी। उम्र का अंतर पृष्ठभूमि की भिन्नता तथा यहां तक की कुछ मामलों में वैचारिक मतभेद भी उनके सुखद वैवाहिक जीवन में अर्चन नहीं बन पांए।