किस तरह तनावग्रस्त है ‘बच्चों का जीवन’

किस तरह तनावग्रस्त है ‘बच्चों का जीवन’

समय के अभाव के सितम की गाज जब मां और संतान के रिश्तों पर गिरती है तो, सारे समाज का ढांचा चरमरा जाता है। आज के जेट युग में नौकरी पेशा मां के पास बच्चें के लिए वक्त नहीं। ‘‘क्वालिटी टाइम’’ जैसी वाहियात बातों की सफाई देकर सच को नहीं झुठलाया जा सकता। उपभोक्तावादी संस्कृति, उच्च स्तरीय जीवन का क्रेज और अपनी पहचान बनाने की होड़ और अपनी पहचान बनाने की होड़ से उपजी स्वार्थ परक्ता माताओं को अपने जायों से ही दूर कर रही हैं। क्या कहते हैं मां बापः- वे कहते है यह मारा मारी, नाइट टू सेवन की जिंदगी हम बच्चों के लिए ही तो जी रहें हैं। बच्चों को सभी सुख सुविधायें, अच्छी शिक्षा, स्टैंडर्ड लाइफ दे सके। इसीलिए तो हम जी तोड़ मेहनत करते हैं। हमारे त्याग को वे आज समझें, ना समझें कभी तो समझेंगे ही। दीपाली माथुर का कहना हैं, ‘‘हमने अपने बेटे संचित को वैलहम जैसे महंगे और प्रेस्टीजियस स्कूल के बोर्डिग में इसीलिए तो डाला है ताकि उसका भविष्य बन जाए, इसलिए तो मुझे नौकरी करनी पड़ रही हैं।‘‘
परिस्थितिवश भी बढ़ती है दूरीः- नीलेश का ट्रांसफर किसी छोटे शहर में हो गया, तो पत्नी और दोनों बच्चें जयपुर ही रहे ताकि बच्चों की पढ़ाई में हर्ज न हो। नीलेश का ट्रांसफर बाद में किसी और जगह हो गया। बच्चों के साथ ही नीलेश और उसकी पत्नी में भी दूरियां आ गई थी। नीलेश ने दूसरी औरत को रख लिया था। मां को घर बिखरते के गम से ज्यादा अपने पर फक्र था कि ये त्याग मैनें अपने बच्चों के लिए किया। निषिता सारा दिन आॅफिस में कम्प्यूटर पर काम करके इतना थक जाती थी कि नन्हीं साक्षा के साथ समय बिताने के लिए उसके पास ऊर्जा ही शेष नहीं बचती थी। उसके सवालों का जवाब देते समय वह खीज जाती थी। मां के बजाय साक्षा पड़ोस वाली आंटी के ज्यादा करीब हो गई थी। टीवी केबल संस्कृतिः- मां की ममता, दुलार, उसका अभय दान देता संरक्षण, सुखदायी सान्निध्य और एक अवर्णनीय निरंतर प्रवाहित होती ऊष्मा का अपने आप में संपूर्ण अहसास ना मिलने पर बच्चा एक अव्यक्त गहरी उदासी में डूब जाता है। ऐसे में वह अपनी मन कंप्यूटर गेम्स, टीवी से बहलाते है। आज जो बच्चे असमय बड़े होते नजर आते इसके पीछे टी.वी कलचर का बड़ा हाथ हैं। वे धीरे-धीरे इतने टी.वी एडिक्ट हो जाते है कि, उन्हें बाहर खेलना, मित्र बनाना भी अच्छा नहीं लगता। मित्र बनाना भी अच्छा नहीं लगता। एकाकी होते बच्चे अपने में ज्यादा गुम रहने लगते हैं। टी.वी. के कारण आपसी संवाद भी नहीं हो सकता है।

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4 Comments on “किस तरह तनावग्रस्त है ‘बच्चों का जीवन’

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