किशोरावस्था जीवन का महत्त्वपूर्ण पड़ाव है। इस अम्र में बच्चों में बहुत बदलाव आते हैं। बच्चों को इस उम्र में समझ पाना जितना जटिल काम है उतना कभी नहीं। बच्चों के विकास में उनके परिवार के साथ-साथ मि़त्रों का भी सहयोग होता है। किशोरावस्था में तो परिवार से भी ज्यादा उनके दोस्तों और सहेलियों का उन पर प्रभाव पड़ता हैं। इसी से उनका व्यक्तित्व बनता या बिगड़ता है। उस उम्र में वे सिर्फ दोस्तों के सम्पर्क में ही रहना चाहते है। उनसे ही मोहब्बत करना चाहते है। उनके साथ ही हर जगह घूमना और जाना पसंद करते है। उनके साथ पार्टियों में शराब-सिगरेट पीना पसंद करते हैं। वे उनके साथ सारे अनुभव बटोरने को तैयार रहते हैं। अनुभव लेने के चक्कर में वे खुद पर नियंत्रध नहीं रख पाते। वे चाहें तो इस सबका सेवन करने के लिए अपने दोेस्तों को मना कर सकते हैं। उन्हें रोक सकते हैं। जब उनके दोस्त उन्हें गलत चीजें खाने-पीने के लिए उत्सुक कर सकते हैं तो क्या वे अपने दोस्तों को इन गलत चीजों के सेवन से नहीं रोक सकते? उन्हें रोकने की हिम्मत तो उन्हें दिखानी ही होगी। यह उम्र इसलिए कच्ची भी कही जाती है।