स्मार्टफोन और टेबलेट का जमाना है। खासकर, यंग प्रोफेशनल के बीच यह काफी लोकप्रिय हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर हर समय मौजूदगी ई-मेल एक्सेस व इंटरनेट से अन्य इन्फार्मेशन लेने के लिए वे इन्हें धड़ाधड़ इस्तेमाल में ला रहे हैं। निजी इस्तेमाल के अलावा आजकल दफ्तरों में भी वे इन प्राइवेट मोबाइल को इस्तेमाल कर रहे हैं। कई देशों में दफ्तर का काम भी इसमें शामिल है। इस नयी कांसेप्ट का लोकप्रिय नाम है बीवाईओडी (बयोड)। यानी ब्रिंग योर ओन डिवाइस। कुछ कंपनियां भारत में भी, आंशिक स्तर पर ही सही, निजी डिवाइस पर काम करने की इजाजत दे रही हैं।
वजह बयोड के ट्रेंड कीः- कई दफ्तरों में टेक्नॉलोजी निजी मोबाइल व टेबलेट के मुकाबले पुरानी है। चाहे वह सॉफ्टवेयर के लेवल पर हो, नेटवर्क की स्पीड का मामला हो या फिर डिवाइस के फीचर्स के स्तर पर। एक और बात है जो वर्कर अपने डिवाइस पर काम करना चाहते हैं वह है जब चाहें, जहां चाहें काम की सुविधा। ऐसे में मैनेजमेंट को भी एतराज नहीं होता जब वह वर्कर की प्रोडक्टिविटी, एफिशिंएसी व संतुष्टि में इजाफा देखती है। साथ ही अपने कंप्यूटर सिस्टम कर्मियों को प्रदान करने की लागत में कमी का एस्टीमेट लगाती है। सिस्को कंपनी के एक आंतरिक सर्वे के मुताबिक औसतन हर हफ्ते एक वर्कर की प्रॉडक्टिविटी में 69 मिनट की वृद्धि होती है यदि वे अपनी पसंदीदा जगह व अपने पंसदीदा फोन या टेब पर काम करें। फिर यदि कंपनी खुद भी लेपटॉप, स्मार्टफोन या टेबलेट कर्मचारी को दे तो वह कंपनी को डेस्क टॉप से सस्ता ही पड़ेगा। आजकल डाटा प्रोटेक्शन के लिए सेक्योर डाटा सेंटर व कंपनी द्वारा खरीद कर कर्मचारियों को पर्सनल डिवाइस पर इस्तेमाल के लिए दी गयी सुरक्षित एप्स उपलब्ध हैं।
वैसे भी कंपनी में जब कोई नया प्रोफेशनल ज्वाइन करे तो हफ्तों लग जाते थे उसे डेस्कटॉप को इंस्टाल व उस पर यूज टू होने में, पर छोटे-कांपेक्ट डिवाइस पर यह काम मिनटों में संभव है। एक वर्कर को कंपनी का डिवाइस देने की औसत लागत 600 डॉलर है। सिस्को व डाटा सिक्योरिटी कौंसिल ऑफ इंडिया की एक स्टडी के परिणाम हैं कि भारतीय कंपनियों के 66 प्रतिशत चीफ इन्फार्मेशन ऑफिसर (सीआईओ) ने बयोड की स्वीकृति को सही माना है और अन्य 44 प्रतिशत ने इस मामले पर लचीला रुख दिखाया है। इसी तरह फोरेस्टर के आईबीएम के लिए सर्वे में भारतीय कंपनियों के सीटीओ, सीआईओ व सीएमओ की बयोड के बारे में राय के मुताबिक 57 प्रतिशत कंपनियां बयोड व मोबाइल टेक्नॉलोजी में भारी इन्वेस्टमेंट करेंगी। गार्टनर की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की आधी से ज्यादा कंपनियां 2017 तक बयोड के ट्रेंड को लागू कर देंगी। गौरतलब है कि भारत में बयोड का ट्रेंड इतना है कि निजी डिवाइज से दफ्तर का काम करने व दफ्तर के नेटवर्क आदि एक्सेस के मामले में चीन व ब्राजील के बाद भारत का दुनिया में तीसरा स्थान है। पिछले साल भारत की 100 कंपनियों में से 47 प्रतिशत रेस्पोडेंट्स ने वर्कर के लिए अपने संगठन में लचीले वर्क एनवायरनमेंट की बात कही।
रिस्क भी हैं इस राह मेंः- क्या यह लाभदायक ट्रेंड है? जवाब होगा-बेशक! पर खतरे कम नहीं हैं। सबसे पहले तो लुभावनी बेशक लगे पर बयोड पर काम करने में खासकर ओपन एप्स व पर्सनल क्लाउड सर्विस पर इन्फार्मेशन लीक के खतरे हैं। बेशक एक निजी तौर पर कोई इसका ज्यादा ख्याल न रखे, पर कंपनी की रिलायबल इन्फार्मेशन व डाटा की सिक्योरिटी दांव पर लग जाती है। खासकर बैंकिंग, फाइनेंस व इंश्योरेंस से जुड़ी कंपनियों का डाटा व कंज्यूमर इन्फार्मेशन काफी संवेदनशील होती हैं। इसी तरह आईटी व आईटी इनेबल्ड सर्विस प्रोवाइडर कंपनीज का मामला है। तभी तो भारत में लगभग आधी कंपनियों ने बयोड को पूरी तरह बैन कर रखा है। सन् 2012 में आईएसएसीए के आईटी रिस्क/रिवार्ड बेरोमीटर नाम के सर्वे में उपरोक्त तथ्य सामने आये थे। तो भारत में अभी बयोड की स्थिति सुरक्षा के अंतर्निहित रिस्क के कारण बहुत ज्यादा अच्छी नहीं है।
सिक्योरिटी के साथ ही इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी डाटा ट्रांसफर व वेब सर्विस आदि को मैनेज करने में कंपनी के आईटी डिपार्टमेंट का सिरदर्द बढ़ जाता है। इसके अलावा एक्सेस कनेक्शन व कर्मियों के पर्सनल डिवाइसेज पर क्लाउड व सुरक्षित एप्लीकेशन प्रोवाइड कराने पर खर्च कंपनी के अपने डिवाइस से कम नहीं बैठता। वैसे भी ज्यादातर बिग डाटा प्रोवाइडर व क्लाउड सर्विस प्रोवाइडर डाटा सेंटर की सिक्योरिटी इस हैंकिंग के जमाने में फूलप्रूफ नहीं कही जा सकती है। यूं भी कई लीगल इश्यू जुड़े हैं बयोड की कंपनियों द्वारा स्वीकृति के पहलू के साथ। जिन कंपनियों ने बयोड को स्वीकृति दी है वह भी पायलट प्रोजेक्ट शर्तों के साथ या फिर आंशिक ऑपरेशन में ही दी है, पूरी तौर पर अभी कोई भी आश्वस्त नहीं।
सिक्योरिटी लीक व मैलवेयर जैसी बातें अभी कंपनियों में हिचकिचाहट पैदा कर रही हैं। कई भारतीय कंपनियों ने अभी बयोड कल्चर को लाने के बारे सोचना शुरू किया है। प्रोफेशनल घर पर और वीकेंड पर काम करके अपनी संतुष्टि और कंपनी की प्रोडक्टिविटी को बढ़ाना चाह रहे हैं। लेकिन जेनपेक्ट जैसी नामी कंपनी ने भी सिक्योरिटी रिस्क के कारण अभी तक स्मार्ट फोन के अलावा बिजनेस के मकसद से कर्मचारियों को और किसी डिवाइस का इस्तेमाल मना किया है। हां, थिन क्लाइंट और बीडीआई टेक्नोलोजी के जरिये भविष्य में वर्क फ्रॉम होम का अच्छा भविष्य इस कंपनी के कर्ताधर्ता जरूर देखते हैं।
कंपनी के अधिकारियों की राय है कि इसके लिए क्लाइंट्स की सहमति जरूरी है। एस्सार ग्रुप में ब्लैक बेरी को छोड़कर किसी भी अन्य स्मार्ट फोन व टेब के साथ बयोड की इजाजत नहीं। एस्सार ने यह स्वीकृति भी एटेचमेंट को सेव करने का फीचर हैंडसेट से हटाकर दी है। बेशक कंपनियां अभी कंट्रोल्ड व लिमिटेड एनवायरनमेंट में ही बयोड की मंजूरी दे रही हैं परंतु मंजूरी दिये बिना भी ऑफिस में डाटा पूरी तरह सुरक्षित नहीं। बेहतर यही है कि कंपनियां मोबाइल डिवाइस मैनेजमेंट बेहतर बनाएं, सुरक्षित एप्स व प्राइवेट क्लाउड सर्विस के साथ मोबाइल प्रोफेशनल को मुहैया कराएं। अच्छा सिक्योरिटी इन्फ्रास्ट्रक्चर हो, सेंसेटिव डाटा वाली ई-मेल को मोबाइल के बजाय डेस्कटॉप व लैपटॉप पर ही रिडायरेक्ट करें। रजिस्टर्ड डिवाइस, डेस्कटॉप वर्चुअ लाइजेशन भी अन्य उपाय हैं।
कई संगठनों को उम्मीद है कि मोबाइल डिवाइस पर पर्सनल व बिजनेस डाटा को हिस्सों में बांटकर यानी कंटेनराइजेशन करके भी बयोड का फायदा लिया जा सकता है और सिक्योरिटी लीक से बचा जा सकता है। कार्पोरेट एप्प स्टोर व एमडीएम सोल्युशंस तो हैं ही जांचे-परखे। क्लाउड बेस्ड एंटरप्राइज मेल (जैसे ऑफिस 365), एप्स (सीआरएम व एमआईएस) व डाटा स्टोरेज भी अन्य उपायों में शुमार हैं जो कंपनी अपनी जरूरतों के मुताबिक लागू करके सिक्योर बयोड के फायदे उठा सकती हैं। बयोड एक तरह से इंटरप्राइज मोबिलिटी का पर्याय है।